दिल -ओ -दिमाग़ मुत्तफ़िक़ न हुआ पाक -ओ- हिन्द की तरह
ये मुहब्बत मुझे मसला -इ- कश्मीर लगती है -
दिल मई ही दर्द इतना, सुनने बालो की कमी न पर जय
हमे दूर लगता ही कही एक और ग़ालिब न बन जय -
किसी के हिस्से दूकान आयी,किसी के हिस्से मकान आयी,
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में "माँ" आयी -..
ना जाने बादलों के बीच क्या साज़िश हुई,
मेरा घर मिटटी का था और मेरे ही घर बारिश हुई.
आप ने दिल पे दस्तख जो दी,
ऐसा लगा के सावन ने हजेरी दी,
मौसम के पहले बारिश ने दिल को भिगोया,
भीगे तो किसके याद में, जिसने हमे बारिश में रुलाया
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